On His Blindness in Hindi
And that one talent ,which is death to hide,
Lodged with me useless, though my soul more bent
To serve therewith my Maker, and present
My true account, lest He, returning chide;
Doth God exact day – labour, light denied?
I fondly ask : but patience, to prevent
That murmur, soon replies, ‘God doth not need
Either man’s work, or His own gifts; who best
Bear His mild yoke, they serve Him best; His state
Is kingly : thousands at His bidding speed,
And post o’er land and ocean without rest;
They also serve who only stand and wait.’
Stanza 1. जब मैं विचार करता हूं कि मेरे आंखों की दृष्टि मेरे आधी उम्र से पहले ही इस अंधकारमय और विस्तृत दुनिया से कैसे चली गई, और एक प्रतिभा जिसको छिपाना मृत्यु के समान है, मुझ में बेकार पड़ी हुई है यद्यपि मेरी आत्मा उस काव्य प्रतिभा के साथ मेरे ईश्वर की सेवा करने को और अपने सच्चा लेखा-जोखा प्रस्तुत करने को बहुत उत्सुक हैं। कहीं ऐसा न हो कि ईश्वर मुझे डाटें या फटकारे , क्या ईश्वर दीवा परिश्रम की आशा करता है जिसकी आंखों की दृष्टि छीन ली गई हो ? मैं मूर्खता पूर्वक पूछता हूं।
Stanza 2. लेकिन धैर्य उस बड़ा बड़बडा़हट को रोकता है और जल्द ही उत्तर देता है, ” ईश्वर को न तो मनुष्य के कार्य की आवश्यकता है और न ही अपने द्वारा दिए गए उपहारों की आवश्यकता है, जो उसके द्वारा दिए गए साधारण कष्टों को सबसे अच्छी तरह सहन करते हैं वही उसकी सर्वोत्तम सेवा करते हैं। उसकी अवस्था राजा की तरह है उसकी आज्ञा के लिए हजारों देवदूत बगैर आराम किए भूमि तथा सागर में उपस्थित रहते हैं। वे भी उसकी सेवा करते हैं जो केवल खड़े रहते हैं और इंतजार करते हैं।